ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम (Law of diminishing marginal utility) : अर्थ, परिभाषा, कारण, मान्यताएं, अपवाद एवं महत्व
यदि किसी वस्तु के स्टॉक में वृद्धि होती चली जाती है तो आने वाली उत्तरोत्तर इकाइयों से मिलने वाली उपयोगिता में निरंतर कमी होती चली जाती है। इस प्रवृत्ति को सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम (Simant upyogita hras niyam) कहते हैं।
उपयोगिता ह्यस नियम या सीमान्त उपयोगिता ह्रासमान नियम उपभोग क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम फ्रेंच अर्थशास्त्री 'हरमैन हैनरिक गोसेन' ने किया था। इसलिए इस नियम को गोसेन का प्रथम नियम भी कहा जाता है।
सामान्यतया किसी वस्तु की प्रत्येक इकाई का उपभोग करने पर आवश्यकता की तीव्रता में कमी होती है। तथा अन्य बातों के समान रहने पर, वस्तु विशेष की प्रत्येक अगली इकाई की उपयोगिता कम होती जाती है। उपयोगिता ह्रास नियम किसी वस्तु की मात्रा में घट-बढ़ तथा सीमांत उपयोगिता में कमी तथा वृद्धि के बीच संबंध स्थापित करता है। आइए इसे हम विस्तार से जानते हैं।
सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की परिभाषा | Definition of the Law of Diminishing Marginal Utility in hindi
साधारण तौर पर देखा जाए तो जब हमको किसी वस्तु की पहली इकाई प्राप्त होती है, तो उससे मिलने वाली उपयोगिता काफी अधिक होती है, क्योंकि प्रारम्भ में प्रत्येक आवश्यकता काफी तीव्रता लिये हुए होती है, परन्तु जैसे-जैसे उस वस्तु की अधिकाधिक इकाइयाँ प्राप्त होती जाती हैं, वैसे-वैसे उस वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों से मिलने वाली उपयोगिता घटती जाती है।
मार्शल के शब्दों में, "किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु की मात्रा (स्टॉक) में वृद्धि होने से जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह अन्य बातों के समान रहने पर, उस वस्तु की मात्रा में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ घटता जाता है।"
उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि वस्तु की प्रत्येक वृद्धि के साथ उसकी सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है।
Table of Contents :1.3. नियम की मान्यताएं1.4. नियम के अपवाद1.5. नियम का महत्व
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम | Law of Diminishing Marginal utility in hindi
सामान्यतया जैसे-जैसे एक वस्तु की अधिक से अधिक इकाइयों का उपभोग किया जाता है वैसे-वैसे उस वस्तु के प्रति इच्छा की प्रबलता घटने लगती है अर्थात् यदि उपभोक्ता एक ही वस्तु का लगातार उपभोग करता है तो प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से उसे मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है और यह घटते-घटते एक ऐसी स्थिति तक पहुँच जाती है जहाँ सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती है और यदि ऐसी स्थिति में भी उस वस्तु का उपभोग किया जाता है, तो सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है। इसे ही 'घटती हुई सीमांत उपयोगिता का नियम' कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी भूखे व्यक्ति को पहली रोटी खाने से अधिकतम उपयोगिता मान लो 10 यूटिल मिलेगी, दूसरी रोटी से पहली रोटी की तुलना में कम सीमांत उपयोगिता मान लो 8 यूटिल मिलेगी, क्योंकि पहली रोटी खाने के बाद दूसरी रोटी के लिए इच्छा की तीव्रता कम हो जाती है। इसी प्रकार तीसरी से 5 यूटिल, चौथी रोटी से 2 यूटिल एवं पाँचवी रोटी से शून्य उपयोगिता प्राप्त होगी और यदि इसके बाद भी रोटी का उपभोग किया गया तो छठवीं रोटी से सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाएगी।
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम की तालिका एवं चित्र द्वारा व्याख्या (Law of diminishing marginal utility with diagram in hindi)
तालिका में X वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग के साथ साथ वस्तु की सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। एक बिंदु पर सीमांत उपयोगिता शून्य, यानि कि उस वस्तु से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त हो जाती है। किन्तु इसके बाद भी एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है।
उपरोक्त चित्र से स्पष्ट है कि X-वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों के उपभोग से सीमान्त उपयोगिता कम होती चली जाती है। आपने देखा कि वस्तु की प्रथम इकाई से प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण 6 इकाई है किन्तु जब क्रमशः दूसरी, तीसरी, चौथी तथा पाँचवीं इकाई का उपभोग किया जाता है तो सीमान्त उपयोगिता क्रमशः कम होकर 4, 2, 0 तथा अंत में -2 इकाई रह जाती है। अर्थात तीसरी इकाई तक सीमान्त उपयोगिता कम होती जाती है बाद में शून्य तथा अंत में ऋणात्मक हो जाती है जैसा कि चित्र द्वारा स्पष्ट है।
आपने चित्र में देखा कि ज्यों-ज्यों उपभोक्ता अतिरिक्त वस्तुओं का उपभोग करता है, इनसे मिलने वाला सीमान्त तुष्टिगुण कम होता चला जाता है, MU वक्र इसीलिए ऋणात्मक ढाल वाला बना है। बिन्दु d पर सीमान्त तुष्टिगुण शून्य है जो यह प्रकट करता है कि यहाँ पर उपभोक्ता को कुल उपयोगिता अधिकतम मिलती है। अब यदि हम एक और वस्तु का उपभोग करते हैं तो सीमान्त तुष्टिगुण ऋणात्मक हो जाता है।
नियम लागू होने के कारण (Reasons for Implementation of the Law in hindi)
प्रो. बोल्डिंग के अनुसार उपयोगिता ह्रास नियम लागू होने के कारण निम्नलिखित हैं -
(1) विशेष आवश्यकता की सन्तुष्टि संभव -
ऐसा माना जाता है कि मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं, किंतु किसी विशिष्ट आवश्यकता को संतुष्ट अवश्य किया जा सकता है। मनुष्य की वस्तु विशेष को उपभोग करने की क्षमता सीमित होती है। वह जैसे-जैसे किसी वस्तु की इकाइयों का उपभोग करता जाता है, वैसे-वैसे इस वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता कम होती चली जाती है। अन्त में एक ऐसा बिन्दु भी आता है जहां पर उसे पूर्ण सन्तुष्टि प्राप्त हो जाती है।
(2) वस्तुएँ एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं -
एक वस्तु, दूसरी वस्तु की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होती है अर्थात् विभिन्न वस्तुओं का एक उचित अनुपात में ही उपयोग किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, रोटी तथा मक्खन का एक निश्चित अनुपात में ही उपभोग किया जा सकता है। यदि रोटी की मात्रा को स्थिर रखकर मक्खन की उत्तरोत्तर इकाइयों में वृद्धि की जाए तो मक्खन की सीमान्त उपयोगिता घटने लगेगी। क्योंकि मक्खन तथा रोटी एक-दूसरे के पूर्ण स्थानापन्न नहीं हैं।
ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम की मान्यताएँ | Assumptions of the Law of diminishing marginal utility in hindi)
सीमांत उपयोगिता ह्यस नियम की मान्यताएं (simant upyogita hras niyam ki manyataye) निम्नलिखित हैं-
1) उपभोग की जाने वाली वस्तु की सभी इकाइयाँ गुण एवं आकार में समान होनी चाहिए।
2) उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयों का आकार उपयुक्त होना चाहिए अर्थात् आकार बहुत सूक्ष्म नहीं होना चाहिए।
3) वस्तु की दो इकाइयों के उपभोग के बीच में कोई समयावधि नहीं होनी बाहिए अर्थात् वस्तु का उपभोग लगातार किया जाना चाहिए।
4) वस्तु की क़ीमत में किसी भी प्रकार का कोई भी परिवर्तन नहीं होना चाहिए। अर्थात उपभोग की जाने वाली वस्तु तथा उसकी स्थानापन्न वस्तुओं के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
5) उपभोक्ता की आदत, रुचि, फैशन, स्वाद और आय में कोई भी परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
6) उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए। अर्थात उपभोक्ता की प्रवृत्ति सामान्य ही होनी चाहिए।
नियम के अपवाद (Exceptions of the Law jn hindi)
उपयोगिता ह्यस नियम से जुड़ी कुछ आलोचनाएं एवं अपवाद कहे जाते हैं जो कि निम्न प्रकार हैं-
1) वस्तु की उपभोग इकाइयाँ बहुत छोटी, यानि कि किसी वस्तु की बहुत सूक्ष्म मात्रा होने पर यह नियम लागू नहीं होता है।
2) दुर्लभ वस्तुओं तथा शान-शौकत के लिए प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं पर यह नियम लागू नहीं होता है।
3) शराब के उपभोक्ताओं के लिए यह नियम लागू नहीं होता है।
4) मुद्रा के संचय के सम्बन्ध में यह नियम लागू नहीं होता है।
5) मधुर कविता अथवा किसी कर्णप्रिय गीत को यदि बार-बार सुना जाए तब भी उसकी सीमांत उपयोगिता घटती नहीं बल्कि बढ़ती जाती है।
अतः निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि वास्तव में सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम का कोई भी अपवाद नहीं है। जो अपवाद हमें दिखाई देते हैं असल में इनकी मान्यताओं को न समझने के कारण हैं। सीधे तौर पर कहा जाए तो हम यह समझ सकते हैं कि किसी भी वस्तु के उपभोग करने की कोई न कोई सीमा अवश्य होती है चाहे वह वस्तु कितनी भी दुर्लभ या फ़ैशन से जुड़ी ही क्यों न हो। एक सीमा के बाद उस वस्तु की सीमान्त उपयोगिता घटने लगती है।
सीमांत उपयोगिता ह्रासमान नियम का महत्त्व | Importance of the Law of Diminishing Marginal Utility in hindi
यह नियम अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आधारमूलक नियमों में से एक है। वास्तव में उपभोग के विभिन्न नियमों की यह नींव है। इस नियम के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) मांग के नियम की सही व्याख्या -
उपभोग का एक महत्वपूर्ण नियम माँग का नियम प्रत्यक्षतः इसी नियम पर आधारित है। मांग के नियम के अनुसार ऊंची क़ीमत की अपेक्षा कम क़ीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा क्रय की जाती है। इसका कारण यह है कि जैसे जैसे वस्तु की अधिक इकाइयां ख़रीदी जाती हैं, उपभोक्ता के लिए इसकी सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। जिस कारण वह वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों को पहले से कम महत्व देता है। अब वह तभी उस वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों को ख़रीदना चाहेगा जब उस वस्तु की क़ीमत कम कर दी जाए।
इस प्रकार मांग के नियम की जड़ें उपयोगिता ह्रास नियम से निकली हैं। माँग वक्र दायीं ओर नीचे क्यों गिरता है इस नियम से अच्छी तरह व्याख्या की जा सकती है। मार्शल ने अपने कराधान एवं सार्वजनिक व्यय के सिद्धांत का निर्माण करने के लिए सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का प्रयोग किया है।
(2) सम सीमांत उपयोगिता नियम का आधार -
उपभोग का एक और नियम 'सम-सीमान्त उपयोगिता नियम' भी इसी नियम पर आधारित है। वस्तु की उपभोग की जाने वाली उत्तरोत्तर इकाइयों की उपयोगिता घटते जाने के कारण उपभोक्ता एक ही वस्तु पर व्यय करने के बजाय वैकल्पिक वस्तुओं पर इस प्रकार व्यय करता है कि व्यय की सभी मदों से उसे सम-सीमान्त उपयोगिता प्राप्त हो सके।
(3) उपभोक्ता की बचत का सिद्धान्त भी उपयोगिता ह्रास नियम पर आधारित -
उपभोक्ता प्रारम्भ में जब किसी वस्तु की प्रथम इकाई क्रय करता है तो उस इकाई से मिलने वाली उपयोगिता उस वस्तु की चुकाई गई क़ीमत से अधिक होती है। परन्तु जब उपभोक्ता उस वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का क्रय करता जाता है, तो एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि वस्तु की सीमान्त इकाई की उपयोगिता उसकी चुकाई गई क़ीमत के ठीक बराबर हो जाती है। अतः इस सीमान्त इकाई पर उपभोक्ता को कोई बचत प्राप्त नहीं होती है, परन्तु इसके पूर्व की सारी इकाइयों पर उपभोक्ता को बचत प्राप्त होती है।
(4) इस नियम के आधार पर उपभोग तथा उत्पादन में विविधता -
सामान्यतया कोई भी उपभोक्ता किसी वस्तु की घटती हुई सीमान्त उपयोगिता के कारण ही, एक सीमा के बाद उस वस्तु का उपभोग करने के बजाय अन्य वस्तुओं की माँग करने लगता लगता है। जिस कारण उत्पादक वर्ग भी उस वस्तु का और अधिक उत्पादन करने के बजाय उसके स्थान पर उन नई वस्तुओं का उत्पादन करना शुरू कर देता है जिनकी मांग उपभोक्ताओं द्वारा की जाती है।
(5) यह नियम विनिमय मूल्य तथा प्रयोग मूल्य के अन्तर को स्पष्ट करता है -
कुछ वस्तुओं, जैसे- हवा, पानी, सूर्य की रोशनी इत्यादि की पूर्ति उपभोक्ता के लिए असीमित होने के कारण उनको सीमान्त उपयोगिता बहुत कम अथवा शून्य होगी। इसलिए इन वस्तुओं का प्रयोग मूल्य (या उपयोगिता) अधिक होते हुए भी इनका विनिमय मूल्य (या क़ीमत) बहुत कम या शून्य होता है।
(6) यह नियम आधुनिक कर प्रणाली का आधार -
प्रगतिशील कर प्रणाली भी उपयोगिता ह्यस नियम पर आधारित है। क्योंकि धनी व्यक्तियों के लिए मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है। जबकि निर्धन व्यक्तियों के लिए अधिक होती है। इसलिए सरकार, अमीर व्यक्तियों पर ग़रीबों की अपेक्षा अधिक ऊँची दर से कर लगाती है।
उम्मीद है आपको हमारा यह अंक "ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम क्या है in hindi" अवश्य पसंद आया होगा। साथ ही हम आशा करते है यह टॉपिक्स आपके अध्ययन में अवश्य ही सहायक साबित होगा।
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